Tuesday 23 August 2016

ओलंपिक चिन्हों का मतलब

ओलंपिक चिन्हों का मतलब

पांच छल्ले: 

ओलंपिक खेलो क¢ प्रतीक हैं एक दूसर¢ से जुड़े पांच छल्ले। इनमें प्रथम पंक्ति में तीन व दूसरी पंक्ति में दो छल्ले हैं। इनके¢ रंग हैं नीलापीलाकालाहरा और लाल। इनकी पृष्ठभूमि में सफेद रंग हैं। इसे बनाने का श्रेय आधुनिक ओलंपिक खेलों के¢ जनक बेरोन पियरे दी कोबर्टिन  को मिला। उनक¢ अनुसार यह सच्चे अर्थों में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतीक है। इसके¢ पांच छल्ले पांच महाद्वीप का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसका सांक¢तिक अर्थ है कि इस खेल क¢ द्वारा सार¢ महाद्वीप क¢ खिलाड़ी आपस में मिलते हैं अ©र स्वस्थ प्रतिय¨गिता करते हैं।
क्या आप जानते हैं कि छल्लों के¢ लिए खास तौर पर इन पांच रंगों का ही प्रयोग क्यों किया गया.  इसका मुख्य कारण है  इनमें प्रयोग किए गए रंगों में से कम से कम एक रंग हर देश क¢ झंडे पर मिलता है।

ओलंपिक मोट्टो मतलब उद्देश्य
ओलंपिक का मोट्टो है फास्टर, हाइअर और स्टांगर यानी तेज, ऊंचा और मजबूत। इसका प्रय¨ग पहली बार 1920 के सातवें एंटवर्प लंपिक में किया गया।
  फ्रांस के एक पादरी फादर डीडान ने इस वाक्य की कल्पना की थी। वह एक स्कूल में अध्यापक थे। उनकी खेलों में बहुत रुचि थी। उन्होंने इस वाक्य का प्रयोग अपने स्कूल से जुड़े क्लबों में किया था।
ओलंपिक ध्वज: 

सन 1913 में ओलंपिक ध्वज तैयार किया गया। इसका सुझाव भी कोबर्टिन ने ही दिया था। सफे¢द सिल्क से बने झंडे पर ओलंपिक के प्रतीक पांच छल्ले लगे हैं। इसका उद्घाटन फ्रांस में जून 1914 में किया गया। परंतु किसी अ¨लंपिक में इसका पहली बार प्रय¨ग 1920  के¢ एंटवर्प अ¨लंपिक में हुआ।
ओलंपिक मस्कट (शुभंकर):
1972 का मस्कट

 सही मायने में ओलंपिक से बच्चों क¨ ¨ड़ने का काम शुभंकर ही करते हैं। पहली बार अ¨लंपिक में किसी शुभंकर का प्रय¨ग 1972 में म्यूनिख ओलंपिक में हुआ। इसक¢ बाद तो शुभंकर घोषित करने की परंपरा ही बन गई। आमतौर पर मेजबान देश अपने किसी प्रमुख जानवर को ही शुभंकर बनाते हैं।
ओलंपिक अग्नि: 
ओलंपिक खेल शुरू ह¨ने से पहले स्टेडियम में ओलंपिक अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है। इसके¢ लिए ओलंपिक मशाल का ही प्रयोग किया जाता है। पूरे ओलंपिक के¢ दौरान यह अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है। सबसे पहले इसका प्रय¨ग 1928 के¢ एम्सटर्डम ओलंपिक में किया गया।
ओलंपिक मशाल:

 ओलंपिक अग्नि को प्रज्ज्वलित करने के¢ लिए ओलंपिक मशाल का प्रयोग किया जाता है। यह मशाल एथेंस से जलाने के बाद पूरे विश्वभर में घूमकर ठीक उसी समय ओलंपिक स्टेडियम में पहुंचती है, जब अग्नि प्रज्ज्वलित करने का समय होता है। विश्वभर के¢ जाने-माने खिलाड़ी इस मशाल को लेकर दौड़ते हैं। पहली बार मशाल का प्रय¨ग सन 1936 के¢ बर्लिन ओलंपिक में किया गया। मशाल को पहले एक विशेष समारोह में यूनान के¢ ओलंपिया नगरी में प्रज्ज्वलित किया गया फिर 3000 धावक इसे सात देशों से गुजारते हुए बर्लिन लेकर पहुंचे। इस मशाल को जलाने के लिए सूर्य की किरणों का प्रयोग होता है। एथेंस ओलंपिक के¢ लिए जलाई जाने वाली मशाल पहली बार सभी महाद्वीपों से होकर गुजर¢गी।



ओलंपिक खेलों में पदक विजेता भारतीय


ओलंपिक खेलों में  पदक विजेता भारतीय

अनिल जायसवाल

भारत ने ओलंपिक खेलों में कुछ देर से भाग लेना शुरू किया। आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन सन 1896 से शुरू हुआ। 1900 के पेरिस ओलंपिक में भारत से एक  खिलाड़ी  ने अपने आप भाग लिया। परंतु आधिकारिक रूप से भारत ने पहली बार 1920 क¢ एंटवर्प (बेल्जियम) ओलंपिक में भाग लिया। इस ओलंपिक में पांच एथलीट और दो पहलवान भाग लेने गए। भारतीय महिलाओं ने सन 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक से ओलंपिक में हिस्सेदारी शुरू की।
अधिकृत रूप से ओलंपिक में भाग लेने के बाद से भारत के हिस्से में ज्यादा पदक नहीं आए हैं। भारत ने पहली बार 1928 के¢ अम्सटर्डम ओलंपिक में हाकी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। तब से रियो ओलंपिक तक भारत ने कुल 9 स्वर्ण 6 रजत और 13 कांस्य पदक जीते हैं। ये सारे¢ पदक भारत को हाकी, कुश्ती, लान टेनिस, भारोत्तोलन, निशानेबाजी, बाक्सिंग, बैडमिंटन और कुश्ती में मिले हैं।

नार्मन प्रीचर्ड (एथलटिक्स) :
कहा जाता है कि पहले कोई खिलाड़ी व्यक्गित स्तर पर भी इन खेलों में भाग ले सकता था। सन 1900 के पेरिस ओलंपिक के दिनों में कोलकाता का नार्मन प्रीचर्ड पेरिस में छुट्टियां मना रहे थे। उन्होंने ओलंपिक में भाग लेने के¢ लिए आवेदन किया, तो उन्हें अनुमति मिल गई। उन्होंने दो सौ मीटर की सीधी एवं दो सौ मीटर की ही बाधा दौड़ में भाग लिया। दोनों में उसने दूसरा स्थान प्राप्त कर दो रजत पदक जीते।


हाकी :
ओलंपिक में भारत को कुछ सम्मान मिला है तो इसका श्रेय हाकी को है। 26 में से 11 पदक भारत ने हाकी में जीते हैं। भारतीय हाकी टीम ने पहली बार 1928 के¢ एम्सटर्डम ओलंपिक में भाग लिया। पहले ही प्रयास में भारत ने धमाक¢दार खेल दिखाते हुए स्वर्ण-पदक जीत लिया। इसक¢ बाद 1956 के मेलबोर्न ओलंपिक तक भारत ही स्वर्ण-पदक जीतता रहा। इसके अलावा 1964 के तोक्यो ओलंपिक औप 1980 के मास्को ओलंपिक में भी भारत ने स्वर्ण जीता। इस तरह इस खेल में भारत ने 8 स्वर्ण 1 रजत और दो कांस्य पदक जीते हैं।


के.डी. जाधव (कुश्ती):
के.डी. जाधव यानी खाश्बा दिग्विजय जाधव महाराष्ट्र के पुलिस बल में थे। उन्होंने पहली बार 1948 के¢ लंदन ओलंपिक में भाग लिया। परंतु वे छठे¢ स्थान पर रहे। 1952 में वह फिर ओलंपिक खेलों में भाग लेने हेलसिंकी गए। वहां बेंटमवेट फ्री स्टाइल कुश्ती के किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। व्यक्तिगत खेलों में भारत के लिए पहली बार पदक जीतने का श्रेय जाधव को ही जाता है।





लिएंडर पेस (लान टेनिस): 
भारतीय टेनिस खिलाड़ी 1924 के पेरिस अ¨लंपिक से लान टेनिस में  भाग ले रहे थे। परंतु पहली सफलता मिली 1996 के अटलांटा ओलंपिक में। धुरंधर टेनिस खिलाड़ियों के बीच भारत के लिएंडर पेस ने टेनिस में ब्राजीली खिलाड़ी को हराकर भारत के लिए कांस्य पदक जीता।

कर्णम मल्लेश्वरी (भारोत्तोलन) :
आंध्र प्रदेश की कर्णम मल्लेश्वरी ने 54 किलो वर्ग में 1994 और 1995 में विश्व चैंपियनशिप में जीत हासिल की थी। 2000 के सिडनी ओलिंपक में किसी ने उनसे उम्मीद नहीं की थी परंतु 69 किलो वर्ग में उन्होंने कांस्य पदक जीतकर तहलका मचा दिया। उनके द्वारा जीता गया पदक ओलंपिक में भारत की किसी महिला द्वारा जीता गया पहला पदक था।

राज्यवर्धन सिंह राठौर (निशानेबाजी) :
लेफ्टिनेंट कर्नल और आज के भारत सरकार में मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर निशानेबाजी में भारत में भारत के लिए पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी हैं। सन 2004 के एथेंस ओलंपिक में डबल ट्रैप निशानेबाजी में उन्होंने देश के लिए रजत पदक जीता। उस ओलंपिक में यह भारत का एकमात्र पदक था।


अभिनव बिंद्रा (निशानेबाजी) :
भारत में 2008 के बीजिंग ओलंपिक तक 88 साल के सफर में कभी भी व्यक्तितगत स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया था। पर यह सूखा खत्म किया अभिनव बिंद्रा ने। उन्होंने 10 मीटर  एयर राइफल में बीजिंग ओलिंपक स्वर्ण पदक जीता।

विजेंद्र सिंह (बाक्सिंग) :
बाक्सिंग के खेल को भारत में कभी भी प्रोत्साहन नहीं मिला। परंतु 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत ने बढिया प्रदर्शन किया। 75 किलोग्राम वर्ग में विजेंदर सिंह ने कांस्य पदक जीता जो ओलंपिक बाक्सिंग में भारत का पहला पदक था।

सुशील कुमार (कुश्ती) :
 बीजिंग ओलंपिक भारत के लिए पहला ऐसा ओलंपिक था जिसमें भारत ने एक से ज्यादा पदक जीते।  सुशील कुमार ने 66 किलो वजन वर्ग में फ्री स्टाइल कुश्ती में  कांस्य पदक जीता। 1952 के बाद कुश्ती में यह भारत के पहला पदक था। यही नहीं सुशील कुमार  अगले ओलंपिक  में इससे भी आगे बढ़े और 1912 के लंदन ओलंपिक में इसी खेल में रजत पदक जीता। वह आज भी भारत के एक मात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने दो अलग-अलग ओलंपिक में व्यक्तिगत पदक जीते हैं।

विजयकुमार (निशानेबाजी) :
 हमाचल प्रजेश के हमीर पुर के विजय कुमार सेना में सुबेदार मेजर हैं। 25 मीटर के रैपिड फायर पिस्टल  प्रतियोगिता में वह बेहतरीन हैं। उन्होंने कामनवेस्थ गेम्स में इस खेल में 5 स्वर्ण पदक जीता है।  2012 के लंदन ओलंपिक में विजय कुमार ने निशानेबाजी में 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल मुकाबले में भारत के लिए रजत पदक जीता। इस जीत के बाद उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड के सथ साथ पद्मश्री सम्मान भी मिला।

सायना नेहवाल (बैडमिंटन) :
महिला बैडमिंटन में भारत का नाम विश्व में चमकाने में सायना नेहवाल का बड़ा हाथ रहा है। वह भारत की पहली मबिला खिलाड़ी हैं जिनहें विश्व में नंबर एक माना गया। 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक के मुकाबले में चीनी खिलाड़ी को हराकर सायना नेहवाल ने कांस्य पदक जीता, जो बैडमिंटन के खेल में भारत का पहला ओलंपिक पदक रहा।

एम.सी.मैरीकोम (बाक्सिंग) :
  भले आज भारतीय पुरुष खिलाडियों ने बाक्सिंग में खूब नाम कमाया है। पर इसकी शुरुआत छोटे से राज्य मणिपुर का महिला बाक्सर एम.सी.मेरी काम ने की थी। जब वह बाक्सिंग के शिखर पर थीं, तब ओलंपिक में बाक्सिंग का खेल था ही नहीं। इसे 2012 के लंदन ओलंपिक में शामिल किया गया। तब तक मेरीकाम 5 बार विश्व चैंपियन बन चुकी थीं। लंदन ओलंपिक में मेरीकाम ने 51 किलोवर्ग के फ्लाईवेट मुकाबले में कांस्य पदक जीता।

गगन नारंग (निशानेबाजी) :
 गगन नारंग 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में विश्व रेकार्ड धारी भी रहे हैं।  उनका मेहनत रंग लाई 20102 के लंदन ओलंपिक में। इसमें 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने भारत का खाता खोला था।

योगेश्वर दत्त (कुश्ती) :
 योगेश्वर दत्त कुश्ती में पदक जीतने वाले तीसरे भारतीय पहलवान हैं। उन्होंने कामनवेल्थ गेम्स और एशियाई खेलों में तो अपना झंडा गाड़ा ही था, पर 2012 के लंदन ओलंपिक में उन्होंने 60 किलोग्राम वर्ग फ्री स्टाइल कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर भारत के खेल इतिहास में अपना नाम  लिखा लिया।

साक्षी मल्लिक (कुश्ती) :
 हरियाणा के रोहतक जिले के एक छोटे से गांव मोखरा में साक्षी का जन्म हुआ। उनके पिता डीटीसी बस में कंडक्टर की नौकरी करते हैं। अपने दादा को कुश्ती  लड़ते देख साक्षी के मन में पहलवान बनने की इच्चा जागी। जह उन्होंने कुश्ती लड़नी शुरु का तो गांव के लोगों को बुरा लगा कि एक लड़की कुश्ती का खेल खेल रही है। और आज उसी लड़की ने सब विरोधों को पीछे छोड़कर 2016 के रियो ओलंपिक में  58 किलो के फ्री स्टाइल वर्ग कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर इतिहास  बना दिया। ओलंपिक कुश्ती में पदक जीतने वाली वह पहली महिला पहलवान हैं।

पी.वी. सिंधु (बैडमिंटन) :
सायना नेहवाल ने महिला बैडमिंटन को नई राह दिखाई तो उस राह में  उनके साथ महिला बैडमिंटन को लोकप्रिय करने में  पी.वी. सिंधु सबसे आगे है। बैडमिंटन के विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली वह पहली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी थीं। उन्होंने लगाचार दो बार विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। 2016 के रियो ओलंपिक में तो सिंधु ने कमाल ही कर दिया। ओलंपिक बैडमिंटन के पाइनल में पहुंचने वाली वह पहली भारतीय बैटमिंटन खिलाड़ी बनीं। फाइनल तक पहुंचने के लिए उन्होंने विश्व नं. 2 और विश्व नंबर तीन खिलाड़ी को हराया। भले ही वह विश्व नं. एक  खिलाड़ी के सामने फाइनल में हार गईं, परंतु रजत पदक जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया।


भारत के लिए ओलंपिक पदक

नार्मन प्रीचर्ड               (एथलेटिक्स)           1900      रजत पदक
नार्मन प्रीचर्ड               (एथलेटिक्स)           1900      रजत पदक
हाकी टीम                         8 स्वर्ण, 1 रजत, 2 कांस्य
के.डी. जाधव               (कुश्ती)               1952       कांस्य पदक
लिएंडर पेस                (टेनिस)               1996       कांस्य पदक
कर्णम मल्लेश्वरी           (वेट लिफ्टिंग)           2000        कांस्य पदक
राज्यवर्धन सिंह राठ©र       (निशानेबाजी)           2004        रजत पदक
अभिनव बिंद्रा              (निशानेबाजी)          2008        स्वर्ण पदक
विजेंद्र सिंह                (बाक्सिंग)             2008        कांस्य पदक
सुशील कुमार              (कुश्ती)               2008        कांस्य पदक
सुशील कुमार              (कुश्ती)               2012        रजत पदक
विजय कुमार              (निशानेबाजी)           2012       रजत पदक
सायना नेहवाल             (बेडमिंटन)            2012        कांस्य पदक
एम.सी. मेरी काम           (बाक्सिंग)            2012        कांस्य पदक
गगन नारंग                (निशानेबाजी)          2012        कांस्य पदक
योगेश्वर दत्त                (कुश्ती)              2012        कांस्य पदक
साक्षी मलिक              (कुश्ती)               2016      कांस्य पदक
पी.वी. सिंधु               (बैडमिंटन)             2016     रजत पदक




ओलंपिक के सदाबहार हीरो


ओलंपिक के¢ हीरो


दादा जी खेल के मैदान में
स्वीडन के आस्कर श्वान को बचपन से ही निशानेबाजी का शौक था। परंतु जब अ¨लंपिक खेल शुरू हुए, तो उनकी उम्र पचास के आसपास हो चुकी थी। पहली बार उन्होंने 1908 के¢ लंदन ओलंपिक में भाग लिया। उस समय उनकी उम्र थी साठ वर्ष। इस उम्र में भी उन्होंने दो स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीतकर लोगों को हैरान कर दिया। 1912 के स्टाकहोम ओलंपिक में भी उन्होंने एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीता। 1916 में प्रथम विश्वयुद्ध होने के कारण अगले ओलंपिक खेल 1920 में एंटवर्प (बेल्जियम) में आयोजित हुए। पर पूरे जोश के साथ 72 वर्ष की उम्र में आस्कर फिर से मैदान में उपस्थित थे। उन्होंने अपने पोते के उम्र के प्रतियोगियों से मुकाबला करते हुए निशानेबाजी में रजत पदक जीत लिया। आज भी सबसे ज्यादा उम्र में ओलंपिक पदक जीतने का रिकार्ड उन्हीं क¢ नाम है।


मृत्यु के मुंह से लौटकर पदक जीता
अमेरिका की बेट्टी एलिजाबेथ रोबिंसन ने जब पहली बार 1928 के एम्सर्टडम ओलंपिक में भाग लिया, तो वह केवल 16 वर्ष की थीं। इसी ओलंपिक में पहली बार महिलाओं की 100 मीटर की दौड़ आयोजित की गई। इसे जीतने का श्रेय राबिंसन को ही मिला। इसके¢ अलावा रिले दौड़ में भी उन्होंने रजत पदक जीता।
इसके तीन वर्ष बाद 1931 में एक विमान दुर्घटना में बेट्टी बुरी तरह घायल हो गईं। एक व्यक्ति ने बेहोश बेट्टी को मृत समझकर अपनी कार की डिक्की में डालकर अस्पताल में छ¨ड़ आया। वह सात हफ्ते तक बेहोश रहीं। फिर होश में तो आ गईं, परंतु दो  वर्षों तक वह अपने पैरों पर खड़ी भी नहीं हो पाईं। पर दृढ़ निश्चयी राबिंसन कड़ी मेहनत कर फिर से 1936 के¢ बर्लिन अ¨लंपिक में लौटी। यही नहीं, 4गुणा 400 मीटर की रिले दौड़ में उसने स्वर्ण-पदक जीतकर अपनी वापसी को सफल कर दिया।



अस्पताल से खेल के मैदान पर
आस्ट्रेलिया के विलियम रायक्राफ्ट ने जब पहली बार 1960 में हुए रोम ओलंपिक में भाग लिया तो वह 45 वर्ष के थे। पहले ही दिन टीम घुड़सवारी प्रतियोगिता में उनके¢ घोड़े ने उन्हें गिरा दिया। उनके¢ कंधे की हड्डी टूट गई। उन्हें हस्पताल ले जाया गया। वहां उन्हें बताया गया कि उनके¢ न खेलने पर अगले दिन उनकी पूरी टीम को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
अगले दिन वह बिस्तर से उठे और स्टेडियम में जा पहुंचे। अपने सहयोगियों के¢ साथ उन्होंने स्पर्धा में भाग लिया और घायल होने के बावजूद स्वर्ण पदक जीतने में सफल हुए।



विकलांगता सफलता में बाधक नहीं
अमेरिका की विल्मा रूडोल्फ जब छोटी थीं, तो पोलियो की शिकार हो गईं। परंतु हिम्मत की धनी विल्मा ने अपनी इच्छा शक्ति से इसे अपनी सफलता के आगे आने नहीं दिया। दौड़ मुकाबलों में उन्हें इतनी सफलता मिली कि आज भी उन्हें दुनिया की सर्वश्रेष्ठ महिला धाविकाओं में से माना जाता है। 1956 के मेलबोर्न ओलंपिक और 1960 के रोम ओलंपिक में भाग लेते हुए उन्होंने 3 स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीता। एक समय ऐसा भी था, जब 100 मीटर, 200 मीटर अ©4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ में विश्व रिकार्ड उन्हीं क¢ नाम थे। ठीक उसी तरह, जैसे आज पुरुषों की दौड़ में उसेन बोल्ट के नाम पर तीनों विश्व रिकार्ड्स हैं


एक दिन में चार स्वर्ण पदक
सोवियत संघ से अलग होने के बाद बेलारूस पहली बार 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भाग ले रहा था। ऐसे में जिमनास्टिक स्पर्धा में बेलारुस के विटाली शेरबो ने एक दिन में ही चार स्वर्ण पदक जीतकर तहलका मचा दिया। बाद में दो और स्वर्णपदक जीतकर एक ओलंपिक में छह स्वर्ण पदक जीतने वाले वह प्रथम जिमनास्ट बने।

एक ओलंपिक में सात स्वर्ण
अमेरिका के मार्क स्पिट्ज ने 1968 के मैक्सिको ओलंपिक की तैराकी प्रतियोगिता में भाग लेने जाने से पहले घोषणा की थी कि वह छह स्वर्ण पदक जीतने का प्रयास करेंगे। परंतु वह अपनी बात नहीं रख पाए छह क¢ बदले वह केवल दो स्वर्ण पदक ही जीत पाए। अपनी असफलता से वह बहुत दुखी थे। चार वर्ष बाद 1972 के¢ म्यूनिख ओलंपिक में उन्होंने अपनी इच्छा पूरी की। इस बार उन्होंने एक नहीं, दो नहीं, सात स्वर्ण पदक जीते। उसने केवल सात स्पर्धाओं में ही भाग लिया और सातों में नया विश्व रिकार्ड बनाया। एक लंपिक में सवार्धिक सात स्वर्ण पदक जीतने का उनका रेकार्ड 2008 में अमेरिका के ही माइकल फेल्प्स ने तोड़ा।

स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली अफ्रीकी अश्वेत धाविका
इथोपिया की डेराटू बचपन में जानवर चराती थी। जानवरों के पीछे-पीछ¢ भागते-भागते, कब वह धाविका बन गई, उन्हें पता ही नहीं चला। 16 वर्ष की उम्र में वह 10000 मीटर की दौड़ में 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भाग लेने  गई। इसे जीतने में सफल भी हुई। ऐसा करके¢ ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली वह पहली अश्वेत अफ्रीकी धाविका बनी। बाद में 2000 के सिडनी ओलंपिक में उन्होंने इस स्पर्धा को फिर जीता।


लगातार चार बार लंबी कूद में स्वर्ण पदक
अमेरिका के कार्ल लुइस को दुनिया के महानतम एथलीट्स में से एक माना जाता है। जेसी ओवंस क¢ बाद एक ओलंपिक (1984 के लास एंजिल्स) में चार स्वर्ण पदक जीतने वाले वह दूसरे एथलीट बने। चार ओलंपिक में भाग लेते हुए उन्होंने 9 स्वर्ण  और 1 रजत पदक जीता। इसमें खास बात यह रही कि इन्होंने चारों ओलंपिक के लंबी कूद स्पर्धा में स्वर्ण पजक जीता।


परफेक्ट टेन पाने वाली पहली जिमनास्ट
रोमानिया की नादिया ने के¢वल 15 वर्ष की आयु में मांट्रियल ओलंपिक में भाग लिया। परंतु यहां शानदार प्रदर्शन करते हुए वह दुनिया की ऐसी पहली जिमनास्ट बनीं, जिन्हें 10 में से 10 अंक मिले। 1980 के मास्को ओलंपिक में भी उन्होंने भाग लिया और कुल मिलाकर पांच स्वर्ण, तीन रजत और एक कांस्य पदक जीता।


तैराकी के बादशाह
अमेरिका के माइकल फेल्प्स को तैराकी का बादशाह कह सकते हैं। उन्होंने पहली बार 2004 के एथेंस ओलंपिक में भाग लिया। पहले ओलंपिक में ही उन्होंने 6 स्वर्ण और 2 कांस्य पदक जीतकर तहलका मचा दिया। अगले 2008 के बीजिंग ओलंपिक में वह और धमाका करने  के इरादे के साथ आए। यहां उन्होंने 8 स्पर्धाओं में भाग लिया और सब में स्वर्ण पदक जीता। एक ओलंपिक में सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक जीतने के रेकार्ड को उन्होंने अपने नाम कर लिया। 2012 के लंदन ओलंपिक में भी वह  फिर भाग लेने आए और 4 स्वर्ण और 1 कांस्य पदक लेने में सफल रहे। इसके बाद उन्होंने संन्यास ले लिया। पर उनका मन नहीं माना और 2014 में वह फिर से तैराकी करने लगे। अपने प्रदर्शन से उन्होंने अमेरिकी ओलंपिक टीम में फिर से जगह बनाई और रियो ओलिपिक में आए। अपने आखिरी ओलंपिक में भी उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन जारी रखा और 5 स्वर्ण और एक रजत पदक जीतने में सफल रहे। इस तरह उन्होंने ओलिंपक में 23 स्वर्ण, 3 रजत और 2 कांस्य पदकों के सथ कुल 28 पदक जीते। एक खिलाड़ी के रूप में किसी और ने ओलंपिक में इतने पदक नहीं जीते हैं। इस ओलंपिक के बाद उन्होंने खेल से संन्यास ले लिया। इस तरह उन्हें ओलंपिक का महानतन खिलाड़ी कह सकते हैं